आर्य आक्रमण सिद्धांत एक मिथक

आर्य आक्रमण सिद्धांत एक मिथक

आर्य आक्रमण सिद्धांत एक मिथक मात्र है। पौराणीक काल की एैसी घटनाएं जो घटी ही नहीं, जो काल्पनीक तथा मनगढ़ंत है और जिनका कोई ठोस प्रमाण नही है उन घटनाओं को मिथक माना जाता है। आर्य आक्रमण सिद्धांत अनुमानो पर आधारित होने के कारण उसके कोई प्रमाण नहीं है इसलिए उसको भी मिथक माना जाता है। फिर भी बहूसंख्य भारतीय अज्ञानवश आर्य आक्रमण सिद्धांत को सही मानते है। आर्य आक्रमण सिद्धांत के कारण भारत का बहुत नुकसान हो रहा है। भारतीय समाज आर्य और द्रविड वंशों में बटने के कारण भारत की एकता और अखंडता में एैसी दरार निर्माण हो गई है कि उसे पाटना बहुत ही कठिन हो गया है। भारत की एकता और अखंडता के लिए सर्व सामान्य भारतीयों को आर्य आक्रमण सिद्धांत के सभी प्रमाणों से साक्षर करना चाहिए। आर्य आक्रमण सिद्धांत का विश्लेषण करने से पूर्व उससे संबंधित सभी घटना क्रम को समझना आवश्यक है। युरोपीय देशों तथा अंग्रेजों ने भारत पर अपनी सत्ता स्थापन करने के उद्देश से संस्कृत भाषा का अध्ययन करना सुरू किया। भाषा वैज्ञानिक सर विलियम जोन्स (28/09/1746 – 27/04/1794) ने संस्कृत भाषा का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला की संस्कृत, ग्रीक, लैटिन, पर्शियन, जर्मन तथा अन्य भाषाओं में बहुत समानता है। उन्होंने उन भाषाओं का समुह बनाकर उसे भारतीय युरोपीय भाषा परिवार – भारोपीय (Indo-European language family) में वग्रीकरण किया। भाषा और प्रजाती को अभिन्न मानकर विद्वानों ने यह सिद्धांत रखा की भारोपीय भाषा बोलने वाले प्रजाती के पूर्वज का मूल निवास स्थान एक ही होगा। चूकीं भारोपीय भाषाओं की तुलना संस्कृत से की थी शायद इसिलिए उन्होंने उस प्रजाती को आर्य नाम दिया था। जब आर्यो के मूल निवास स्थान का सिद्धांत प्रस्तुत किया गया उस समय भारत के ही नहीं अपितू विश्व के इतिहासकार भारत के इतिहास से अनिभीज्ञ थे। शायद इसिलिए विश्व के अनेक इतिहासकारों तथा भारत के अनके विद्वानों ने अलग अलग जगहों को आर्यो का मूल निवास स्थान सिद्ध करने का प्रयास किया था।

 

           आर्य आक्रमण सिद्धांत को आर्यो के मूल निवास स्थान सिद्धांत की नींव पर जर्मन पंडित मैक्स मूलर (6/12/1823 – 28/10/1900) ने 1848 में  प्रस्तुत किया था। उनके सिद्धांत के अनुसार आर्यो का मूल निवास स्थान मध्य आशिया था। यहीं से उनकी एक शाखा ईरान, दुसरी शाखा युरोप और तिसरी शाखा भारत के तरह गई। मैक्समूलर के सिद्धांत के अनुसार – 

               India was invaded and conquered by nomadic light-skinned Indo-European tribes from Central Asia around 1500-100 BC, who overthrew an earlier and more advanced dark-skinned Dravidian civilization from which they took most of what later became Hindu culture.

मध्य आशिया के श्वेत वर्णीय इंडो-युरोपीय घुमंतू जातीयों ने 1500-100 ई.पू. के द्वौरान भारत पर आक्रमण कर उसे जीत लिया, उन्होंने पूर्व के अधिक प्रगत कृष्ण वर्णीय द्रविड सभ्यता को उद्ध्वस्थ कर दिया। उन्होंने उसीसे बहुत कुछ लिया जो बाद में हिन्दू संस्कृति बनी।

आर्य आक्रमण सिद्धांत को 1920 में हुए सिंधु घाटी सभ्यता (3300 ई.पू. से 1700 ई.पू.) की खोज के बाद बहुत बल मिला। इतिहासकारों ने यह निष्कर्ष निकाला की सिंधु घाटी सभ्यता यह द्रविड सभ्यता थी जिसे आर्यो ने आक्रमण कर नष्ट कर दिया तथा द्रविडों को दक्षिण भारत में खदेड़ दिया। सिंघु घाटी सभ्यता के अनेक स्थानों पर हुए पुरातत्वीय उत्खननांे में मिले साक्षों के आधार पर विश्व के इतिहासकारांे ने आर्य आक्रमण सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया है। यही कारण है कि वर्तमान में आर्य आक्रमण सिद्धांत (AIT-ARYAN  INVATION THEORY) का नाम बदलकर आर्य स्थलांतर सिद्धांत (AMT-ARYAN MIGRATION THEORY) कर दिया है। इतिहासकारों ने प्राचीन भारतीय इतिहास के सभी प्रमाणों को एकत्रित कर आर्य आक्रमण सिद्धांत और आर्य स्थलांतर सिद्धांत दोनों को भी मिथक सिद्ध कर दिया है।      

आर्य आक्रमण सिद्धांत तथा आर्य स्थलांतर सिद्धांत को भाषा वैज्ञानिकों, मानववंशशास्त्रीयों, पुरात्तवेत्ताओं तथा इतिहासकारों ने जिन प्रमाणों के आधार पर मिथक प्रमाणित किया उनको प्रस्तुत कर भारतीयों के मन में व्याप्त संभ्रम दूर किया जा सकता है। प्राचीन भारतीय सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता है जो दस हजार वर्षो से निरंतन चली आ रही है। ऋग्वेद को प्राचीन भारतीय सभ्यता के इतिहास का सबसे प्राचीन प्रमाण माना जाता है। मैक्स मुलर ने ऋग्वेद की रचना का कालखंड 1200-1000 ई.पू. निर्धारित की थी। लेकिन संशोधनो के उपरांत ऋग्वेद की रचना का कालखंड 6000-4000 ई.पू. निर्धारित की गई है। सिंधु घाटी सभ्यता की खोज के बाद विश्व को भारत के ऋग्वेद पूर्व कालखंड के इतिहास के बारे में पता चला। विद्वानों ने मेहरगड़ के उत्खन्न के बाद सिंधु घाटी सभ्यता की कालगणना 3300 से 1700 ई.पू में सुधार कर 7000 से 1700 ई.पू. निर्धारित की है। मैक्स मूलर के आर्य आक्रमण सिद्धांत के प्रमुख मुद्दो का विश्लेषण कर उसके मिथकता को उजागर किया जा सकता है।

 

1) आर्य प्रजाती – मैक्स मूलर के अनुसार श्वेत वर्णीय इंडो-युरोपीय घुमंतू आर्य जातीयों ने भारत पर आक्रमण किया था। ऋग्वेद में आर्य नाम की किसी भी प्रजाती का प्रमाण नहीं मिलता। ऋग्वेद में आर्य यह शब्द श्रेष्ठ, कुलिन तथा सभ्य इस रूप में प्रयोग किया गया है। मैक्स मूलर के अनुसार आर्य गोर वर्णीय थे पर आर्यो के देवता विष्णु, राम और कृष्ण श्याम वर्णीय थे।  

2) आर्यो का मूल निवास स्थान – मैक्स मूलर के अनुसार भाषा की समानता के आधार पर मध्य एशिया को आर्य का मूल निवास स्थान माना गया। पर भारोपीय भाषा के कुछ ही शब्दों में समानता है लेकिन अधिकांश शब्दों में मेल नहीं है तथा व्यकरण में भी समानता नही है। सिंधु घाटी सभ्यता की लिपी की किसी भी भाषा से कोई समानता नहीं है क्योंकी वह आज तक पढ़ी ही नहीं गई। ऋग्वेद में आर्य बाहर से भारत में आनेका या आर्यो के मूल निवास स्थान का कोई प्रमाण नहीं मिलता। उसी प्रकार भारत की संस्कृति तथा मध्य एशिया के देशों की संस्कृति में कोई समानता नही है। मध्य एशिया में आर्यो के पूर्वजों के कोई प्रमाण नहीं मीले।  

3) आर्य आक्रमण – मैक्स मूलर के अनुसार आर्यो ने 1500 ई.पू. में भारत पर आक्रमण कर उसे जीत लिया तथा पूर्व के अधिक प्रगत कृष्ण वर्णीय द्रविड सभ्यता को उद्ध्वस्थ कर दिया। सिंधु घाटी सभ्यत में मिले कंकालो पर आक्रमण के कोई निशान नहीं है। उसी प्रकार उनके डीएनए मध्य एशिया के लोंगो के डीएनए में समानता नहीं है। इतिहासकारों ने यह निष्कर्ष निकाला की सरस्वती नदी के लुप्त होने के कारण सिंधु घाटी सभ्यता का अंत हो गया था। डाॅ. बी. आर. आंबेडकर ने अपने पुस्तक शुद्र कौन थे? में आर्य आक्रमण सिद्धांत को गलत साबित किया है।

3) हिन्दू संस्कृति – मैक्स मूलर के अनुसार द्रविड सभ्यता से बहुत कुछ लेकर हिन्दू संस्कृति बनी है। भारतीय साहित्य का अध्ययन करने पर विद्वानो ने यह निष्कर्ष निकाता की भारत के विन्ध्याचल पर्वत के उत्तर का भूभाग पंचगौड तथा दक्षिण का भूभाग पंचद्रविड ़कहलाता था। भारत के दक्षिण में रहनेवाले लोगों को द्रविड कहते है। हिन्दू संस्कृति तथा द्रविड संस्कृति भारतीय संस्कृति के अंग है। तमिल भाषा का व्याकरण अगस्त ऋषी ने बनाया था। एैसे अनेक प्रमाण मिले है जो हिन्दू संस्कृति की प्राचीनता प्रमाणीत करती है।   

     प्राचीन भारतीय सभ्यता के एैसे अनेक प्रमाण मिले है जो आर्य आक्रमण सिद्धांत तथा आर्य स्थलांतर सिद्धांत को मिथक सिद्ध करते है। उनमें सबसे महत्वपूर्ण वैदिक साहित्य में वर्णित सरस्वती नदी की खोज है।  सिंधु घाटी सभ्यता के बहुसंख्य स्थान प्राचीन सरस्वती नदी के किनारे हंै। शायद इसलिये सिंधु घाटी सभ्यता को ’सिंधु-सरस्वती सभ्यता’ के नाम से भी जाना जाता है।(चित्र क्र.1देखें) उसी तरह नासा के वैज्ञानिकों ने सैटेलाइट द्वारा भेजे पृथ्वी के चित्रों के आधार पर दक्षिण भारत और श्रीलंका के बीच में बने राम सेतु बाँध को भी एक महत्वपूर्ण खोज माना जाता है। इसे रामायाण काल का प्रमाण माना जाता है।(चित्र क्र.2देखें) उसी तरह गुजरात तट के समुद्र में डूबी कृश्ण भगवान की द्वारका नगरी की खोज भी एक महत्वपूर्ण खोज है। इसे महाभारत काल का प्रमाण माना जाता है।(चित्र क्र.3देखें)  ऐसा माना जाता था कि वैदिक सभ्यता और सिंधु घाटी सभ्यता मंे परस्परसंबंध नहीं था। पर सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थानों पर हुए उत्खननांे में प्राप्त अवषेशों का विशलेशण करने पर विद्वानों ने यह निश्कर्ष निकाला की दोनांे भी सभ्यताएँ एक ही सभ्यता की कड़ी हंै। हड़प्पा मंे प्राप्त एक मूर्ति में स्त्री के गर्भ से निकलता एक पौधा दिखाया गया हंै। विद्वानों के मत में यह पृथ्वी देवी की प्रतिमा है।(चित्र क्र.4देखे)  मोहनजोदारो में पषुपतिनाथ की मूर्ति भी मिली है।(चित्र क्र.5देखें)  उसी प्रकार हिंदु धर्म मे पूजनीय स्वतिक चिह्न भी मिला है।(चित्र क्र.6देखें) ये सभी प्रमाण आर्य आक्रमण सिद्धांत तथा आर्य स्थलांतर सिद्धांत को मिथक सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। 

वीरेंद्र देवघरे

लेखक हे धर्म, संस्कृती, इतिहास आणि सामाजिक विषयाचे अभ्यासक व लेखक आहेत. मो.- ९९२३२९२०५१.

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