भारत की मूलभूत समस्याओं का समाधान

भारत की मूलभूत समस्याओं का समाधान |

भारत की मूलभूत समस्याओं का समाधान इस विषय पर आज चिंतन मनन करने की नितांत आवश्यकता है। भारत की स्वतंत्रता के 50 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर संसद में भारत की मूलभूत समस्याओं पर चर्चा की गई थी। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह कि उस दिन के बाद ना तो संसद में ना समाज में नाही किसी भी संस्था में उस विषय पर फिर से चर्चा की गई। भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष हो रहे है फिर भी आज भारत अनेक गंभीर समस्याआें से घीरा है। उन समस्याओं का स्वरूप इतना विस्पोटक है कि भारत की एकता और अखंडता समाप्त होने के कागार पर खडी है। स्वतंत्रता प्राप्ती के सात दशको के बाद भी भारत की समस्याओं में लगातार बढोतरी होते जा रही है। भारत की मूलभूत समस्याओं के समाधान के लिए कई महापुरुषोंने अनेक शतकों तक प्रयत्न करने के उपरांत भी परिस्थितियों में सुधार तो नहीं हुए उलटा समस्याओं में और बढोतरी हुई। इसका मुख्य कारण यह है कि भारत की मूलभूत समस्याओं के समाधान के संबंध में आज तक जो भी उपाय किये गये वे कारगर साबीत नही हुए। शायद आज तक भारत की मूलभूत समस्याओं पर योग्य तरह से संशोधन ही नही हुआ। जब तक भारत की समस्याओं के तह तक जा कर उनके मूल कारणों का पता नही किया जाता तब तक उनका परिपूर्ण समाधान ढुंडना असंभव है। समस्या का सही नीदान करने पर ही योग्य उपाययोजना की जा सकती है। प्रत्येक समस्या के दो बाजू और अनेक पहलू होते है उससे असंख्य प्रक्रियाएं जुड़ी होती है। इसलिए आज भारत की मूलभूत समस्याओं के समाधान के लिए उनका सार्वांगिण, समग्रता और सर्वदृष्टिकोनो से संशोधन करने की नितांत आवश्यकता है।

भारत की मूलभूत समस्याओं के समाधान के लिये पहले उनका वर्गीकरण करना पडेगा। भारत का इतिहास दस हजार वर्षों का है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति पाषाण युग, हिम युग, महाप्रलय, कृषि युग, कांस्य युग, लोह युग तथा विज्ञान युग से गुजरकर समृद्ध हुई है। इस दौरान भारतीय सभ्यता और संस्कृति ने जो अनेक उपलब्धियां प्राप्त की है उस समृद्ध धरोहर को आज संभालकर रखने की आवश्यकता है। विश्व की अनेक सभ्यताएं उनके दोषों के कारण समाप्त हो गई लेकिन भारतीय सभ्यता और संस्कृति अपनी उपलब्धियों के कारण दस हजार वर्षों से निरंतर चली आ रही है। भारत की मूलभूत समस्याओं में कुछ प्राचीन युग से चली आ रही है, कुछ मध्य युग कि है, तो कुछ आधुनिक युग की है। प्राचीन युग में भारतीय सभ्यता और संस्कृति के निर्माण, विस्तार और विकास करते समय भारतीय जीवन पद्धती में अनेक दोष निर्माण हुए थे। मध्य युग में अस्थिर सांस्कृतिक राजकिय तथा सामाजिक परिस्थिती के कारण प्राचीन युग की समस्याएं अधिक जटिल हो गई और उसके साथ अनेक नई समस्याएं निर्माण हुई थी। आधुनिक युग में विज्ञान एवं तकनिकी के कारण व्यवस्था परिवर्तन से प्राचीन और मध्य युग की समस्याओं के साथ अनेक नई समस्याएं निर्माण हुई थी। भारत के परतंत्रता की कालावधि में संस्कृतिक प्रवाह थमने से अनेक सामाजिक समस्याएं निर्माण हुई थी। स्वतंत्रता प्राप्ती के बाद भारत की मूलभूत समस्याओं के समाधान के लिए जो उपाय किए वे कारगर साबित नहीं होने के कारण और नई समस्याए निर्माण हुई। अगर शीध्र ही इन सभी कालखंडों में निर्माण हुई भारत की मूलभूत समस्याओं का समाधान नही ढुंडा गया तो भारत के विघटन को रोकना असंभव हो जायेगा।

भारत की मूलभूत समस्याओं के समाधान के लिए उन समस्याओं का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विश्लेषण करना आवश्यक है। याने समस्याएं कब, कहाँ, कैसे और क्यो निर्माण हुए इसका विश्लेषण करना। आधुनिक युग में प्राचीन और मध्य युग की कालबाह्य अनेक समस्याऔं का कोई ओचित्य ही नही रहा फिर भी उनके समाधान के लिए समय और शक्ति को बरबाद किया जा रहा है। आज भारत ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व की मूलभूत समस्याओं में वर्ग, वंश, वर्ण, जाती, पंथ, सम्प्रदाय, धर्म, प्रदेश,भाषा और संस्कृति प्रमुख है। इन समस्याओं के कारण निर्माण हुई असंख्य समस्याओं से आज पूरा विश्व परेशान हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए विश्व में कई विचारधाराओं का उदय हुआ लेकिन उन्हीं विचारधाराओं में आज भिषण संघर्ष चल रहा है। इन समस्याओं और विचारधाराओं को लेकर भारत में भी आज बहुत बडे प्रमाण में राजनीति की जा रही है। सर्वसामान्य भारतीय भारत की मूलभूत समस्याओं का समाधान अपने स्वार्थ, हितसंबंध और विचारधारा के आधार पर करते है। भारत की मूलभूत समस्याओं का समाधान इस विषय पर संशोधन करने के लिए प्राचीन भारत के भूगोल, इतिहास, संस्कृति, साहित्य, दर्शन, जीवन पद्धती तथा उस जीवन पद्धती में निर्माण हुए दोषों का ज्ञान आवश्यक है। उसी तरह उन समस्याओं के समाधान के लिए आज तक किए गए उपायों का अध्ययन करना आवश्यक है। उन समस्याओं के समाधान के लिए आधुनिक विचारधाराएं सक्षम है या नही इसका परीक्षण करना भी आवश्यक है। उन समस्याओं के समाधान के लिए मानवीय प्रवृत्तियों पर नियंत्रण के उपाय करना उतना ही आवश्यक है। वैसे तो सभी समस्याएं एकमेक से जुड़ी है पर कुछ समस्याएं ऐसी है जो एकदुसरे से अलग नहीं की जा सकती। अगर ऐसी समस्याओं की श्रृंखला को एक समस्या मानकर समाधान निकालने का प्रयास किया जायेगा तो ज्यादा परिणामकारक होगा। भारत की मूलभूत समस्याओं के समाधान के लिए सभी समस्याओं की श्रृंखला का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संशोधन करने की आवश्यक है।

वीरेंद्र देवघरे

लेखक हे धर्म, संस्कृती, इतिहास आणि सामाजिक विषयाचे अभ्यासक व लेखक आहेत. मो.- ९९२३२९२०५१.

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