भविष्य में भारत पुनः विश्वगुरू

भविष्य में भारत पुनः विश्वगुरू

भविष्य में भारत पुनः विश्वगुरू पद पर विराजमान होगा आज यह विश्वास भारतीयों के मन में जागा है। वह इसलिए की आज भारत की राजकीय सामाजीक और आर्थिक परिस्थिती भारत को विश्वगुरू बनाने के लिए अनुकूल है। आज आवश्यकता है कि प्रत्येक भारतीयों ने भारत को पुनः विश्वगुरू पद पर विराजमान करने के ध्येय को पूर्ण करने का संकल्प लेकर तद्नुसार कार्य करें। आज विश्व में भारत की छबि भले ही अप्रगत, असमृद्ध तथा अवैज्ञानिक हो लेकिन प्राचीन काल में भारत की प्रगति, समृिद्ध तथा वैज्ञानिक संशोधनों की कीर्ति दिगदिगंत तक फैली थी। प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता मानी जाती है। विश्व कि कई प्राचीन सभ्यताएँ काल के कराल में लुप्त हो गई। लेकिन भारतीय सभ्यता दस हजार वर्षां से निरंतर चली आ रही है। जब युरोप के निवासी जंगली अवस्था में थे उस समय भारत में वेदो की रचना की जा रही थी। प्रचीनकाल में भारत को सोने की चिडिया कहा जाता था। समृद्धी के कारण ही भारत को अनेक आक्रमणों का सामना करना पडा। प्राचीनकाल में भारत ने गणित, खगोलशास्त्र, भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, वैधकशास्त्र, स्थापत्यशास्त्र तथा अनेक विषयों में बहुत प्रगति की थी। प्राचीन भारत में हुए शून्य, दशमलव प्रणाली और त्रिकोणमिती की खोज को आधुनिक विज्ञान की नींव मानी जाती है। खगोलशास्त्री सूर्य और चंद्र ग्रहण का सही समय निकालते थे। चिकित्सा पद्धति में प्लास्टिक सर्जरी भी की जाती थी। विश्व की अन्य सभ्यताओं ने भारतीयों से विज्ञान का ज्ञान प्राप्त किया था। भारत में नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालयों में अन्य देशों के विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। आज विश्व में योगशास्त्र बहुत लोकप्रिय है। विश्व के प्रसिद्ध इतिहासकार वील डुरंट ने लिखा है –

“India was the motherland of our race, and Sanskrit the mother of Europe’s languages: she was the mother of our philosophy; mother, through the Arabs, of much of our mathematics; mother, through the Buddha, of the ideals embodied in Christianity; mother, through the village community, of self-government and democracy. Mother India is in many ways the mother of us all.”

अर्थात भारत मानवजाति की मातृभूमि और संस्कृत यूरोपीय भाषाओं की जननी थी। वह हमारे दर्शन की माता, अरबों के माध्यम से हमारे गणित की जन्मदात्री, क्रिश्चेनिटी पर भगवान बुद्ध के विचारों के प्रभाव के माध्यम से मातृवत, ग्रामीण समुदायों के स्वराज्य और प्रजातंत्र के माध्यम से माँ थी। भारत माँ हर दृष्टि से हम सब की माता है।

प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति की उपलब्धियों के आधार पर ही प्रचीनकाल में भारत को विश्वगुरू माना जाता था।

भविष्य में भारत को पुनः विश्वगुरू पद प्राप्त करने के लिए अपनी योग्यता सिद्ध करनी पडे़गी। भारतीय संस्कृति में गुरू को बहुत महत्व है। गुरूओं के ज्ञानदान, मार्गदर्शन, व्यक्ति समाज और राष्ट्रनिर्माण तथा सामाजिक नैतिक और आध्यात्मिक मुल्यनिर्माण जैसे अनेक कार्यो के कारण ही आज भारत को महान माना जाता है। एैसी मान्यता है कि गुरू बिना ज्ञान कहां। गुरू ही समाज को अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की और ले जाता है। शास्त्रों में लिखा है –

गुकारस्त्वन्धकारस्तु रुकार स्तेज उच्यते। अन्धकार निरोधत्वात् गुरुरित्यभिधीयते ॥

‘गु’कार याने अंधकार, और ‘रु’कार याने तेज; जो अंधकार का (ज्ञान का प्रकाश देकर) निरोध करता है, वही गुरु कहा जाता है ।

आज एैसे ही विश्वगुरू की आवश्यकता है जो विनाश की और जा रहे विश्व को बचा सकें। आज के विज्ञानयुग में मानवो ने इतनी प्रगति की है कि जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन उसके साथ मानवों ने इतने विनाशकारी अणवस्त्रों का निर्माण किया है कि उनसे कई बार पृथ्वी नष्ट हो सकती है। औद्योगीकरण के कारण पर्यावरण संतुलन बिघड़ने से पृथ्वी की जीव सृष्टी समाप्त होने का संकट गहरा रहा है। विकास की अंधी दौड में मानव अपना ही विनाश कर रहा है। विज्ञान तथा तंत्रज्ञान पर आधारित पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से बढ़ते भौतिकवाद के कारण मानवों में आज अनेक विकृतियाँ निर्माण हो रही है। उच्च मानवीय मूल्यों का र्हास हो रहा है। दुराचार, व्यभिचार तथा हिंसाचार का प्रमाण बढ़ रहा हैं। आज विश्व में असहिष्णुता, आतंकवाद और अमानवियता अपने चरमसिमा पर है। तिसरे महायुद्ध की आशंका से विश्व भयभित है। इसलिए आज विश्व को एैसी संस्कृति की आवश्यकता है जो विश्व की समस्याओं का समाधान कर सकें। भारतीय संस्कृति सिर्फ विज्ञान और तकनीकी पर आधारित पाश्चात्य संस्कृति का योग्य पर्याय है। भारतीय जीवनपद्धती विश्व की समस्याओं का समाधान करने में सक्षम है।। भारतीय दर्शन आधुनिक युग की विश्व संस्कृति निर्माण करने की कल्पना साकार कर सकत है। इस संबंध में अनराल्ड टायनबी ने लिखा है –

“Today we are still living in this transitional chapter of the world’s history, but it is clear that a chapter which had a western beginning will have an Indian ending if it is not to end in the self-destruction of the human race. In the present age, the world has been united on the material plane by western technology. But this western skill has not only ‘annihilated distance’; it has armed the peoples of the world with weapons of devastating power at a time when they have been love each other. At this supremely dangerous moment in human history, the only way of salvation for mankind is an Indian way ”

‘….. If india were ever to fail to live upto this Indian ideal which is the finest, and therefore, the most exacting legacy in your Indian heritage, it would be a poor look-out for mankind as a whole. So a great spiritual responsibility rests on India.’

अर्थात आज हम विश्व इतिहास के संक्रमणक पर्व में रह रहे है, लेकिन यह स्पष्ट हो गया है कि पश्चिम ने आरंभ किए इस पर्व का अंत भारतीय होना चाहिए, अगर एैसा नहीं हुआ तो यह पर्व मानव जाति के आत्मघात में समाप्त होगा। आधुनिक युग में विश्व पश्चिमी तकनीक द्वारा भौतिक पृष्टभूमि में संघटित हुआ लेकिन पश्चिम के कौशल ने ना सिर्फ विश्व को विनाश की राह पर अग्रेसर किया बल्कि विश्व के लोगों को एैसे समय विनाशकारी अस्त्रों से सुसज्जित किया जब उनको एक दूसरों से पे्रम करना चाहिए था। विश्व इतिहास के इस अत्याधिक भयंकर परिस्थिती में मानव मुक्ति का एकमेव मार्ग है भारतीय मार्ग

……. अगर भारत अपने आदर्शों को जतन करने में असफल हुआ, जो सर्वोतम है तो यह भारतीय विरासत के संबंध में बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा। उसी तरह यह संपूर्ण मानवता के प्रती कर्तव्यहीनता होगी। इसलिए भारत पर बहुत बडी आध्यात्मिक जिम्मेदारी है।

भविष्य में भारत को पुनः विश्वगुरू पद पर सर्वसहमति से निर्वाचन के लिए विश्व की समस्याओं के समाधान के लिए भारतीय संस्कृति ही एकमात्र विकल्प है यह सिद्ध करना होगा। आज विश्व की मूलभूत समस्याओं में साम्राज्यवाद, आतंकवाद तथा युद्ध प्रमुख है। इन समस्याओं की जड में वर्ग, वर्ण, वंश, धर्म, सम्प्रदाय, भाषा, प्रदेश, जाती और संस्कृति इनमें से कोई न कोई कारण होता है। जब तक इन मूलभूत समस्याओं का समाधान नहीं होता तब तक विश्व की गरिबी, भुखमरी, विषमता, शिक्षा, स्वास्थ पर्यावरण जैसी अन्य समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता। भारतीय संस्कृति के सनातन, शाश्वत और चिरंतन दर्शन से न सिर्फ भारत की बल्कि विश्व की सारी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। भारत में जितनी जनजातियाँ, प्रदेश, भाषाएँ, सम्प्रदाय, धर्म, संस्कृतियां और विविधताएँ है उतनी विश्व में कहीं नहीं है । भारतीय संस्कृति के सर्वसमावेशक सिद्धांत ने आस्तिक, नास्तिक, निर्गुण-निराकार सगुण-साकार और विविध उपासना पद्धतियाँ, एकेश्वरवादी, अनेकेश्वरवादी, अनेक संप्रदाय, साहित्य, धार्मिक ग्रंथ, साधु, संत, वंश, वर्ण, प्रदेश, भाषा, जाति तथा अनेक विचार धाराओं को समाविष्ट कर उत्कृष्ट संस्कृति का निर्माण किया। भारत पर आक्रमण करने वाली शक, हुण, कुशाण जैसी बर्बर जातियों को भारतीय संस्कृति में समाविष्ट किया तथा यहुदी पारसी जैसे अनेक स्थलांतरित लोगों को अपनया था। भारतीय संस्कृति ने भारत के शैव, वैष्णव, शाक्त तथा स्मार्त पंथों में समन्वय कर विशाल जीवन पद्धति का निर्माण किया तथा भारतीयों में कालानुरूप परिवर्तनशीलता की मानसिकता बनाई। जिससे पंथों के बिच का संघर्ष समाप्त हुआ। भारतीय संस्कृति ने विज्ञान, अध्यात्म और धर्म जैसे सिद्धांतो के त्रिवेणी संगम से भारतीय संस्कृति को समृद्ध बनाया। भारत ने विज्ञान से भौतिक प्रगति, अध्यात्म से मानवीय सद्गुणों का विकास तथा धर्म से सामाजिक नैतिक तथा कर्तव्य पर नियम बनाए। भारतीय संस्कृति ने सर्व धर्म सम भाव सर्व पंथ समादर सिद्धांत से भारतीयों में विभिन्न प्रदेशों में प्रचलित सभी धर्मों (सामाजिक नियमों) को समान भाव तथा सभी पंथों (उपासना पद्धतियों) को समान आदर देने की प्रवृत्ति विकसित की थी। सहिष्णुता सिद्धांत ने भारतीयों में भिन्न वंश, वर्ण, प्रांत, भाषा, जाति, संप्रदाय और पंथ तथा उनके आचार-विचार, रीति-रिवाज तथा प्रथा-परंपराओं का सम्मान करने की प्रवृत्ति निर्माण की थी। परिणाम स्वरूप भारतीयों में सहनशीलता, सामंजस्य और सद्भावना, दया, क्षमा, शांति, सत्य, अहिंसा, प्रेम, बंधुता, तथा मानवता जैसे मानवीय गुणधर्मों का विकास किया हुआ था। अनेकता में ऐकता जैसे सिद्धांत ने भारत की एकता और अखंडता को मजबूत कर भारत को बहुधार्मिक, बहुभाषिक तथा बहुसांस्कृतिक राष्ट्र बनाया था। वसुधैव कुटुम्बकम याने सारा विश्व ही एक परिवार है यह भारतीय संस्कृती का दर्शन है। अगर भारतीय संस्कृति के अद्वितीय सिद्धांतो को वैश्विक स्तर पर अमल में लाया गया तो विश्व की समस्याओं का समाधान हो सकता है। भारतीय संस्कृति के सिद्धांतो के कारण ही भविष्य में भारत पुनः विश्वगुरू पद पर विराजमान होगा।

फोटो साभार – depositphotos.com

वीरेंद्र देवघरे

लेखक हे धर्म, संस्कृती, इतिहास आणि सामाजिक विषयाचे अभ्यासक व लेखक आहेत. मो.- ९९२३२९२०५१.

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