विचारों की परिपक्वता
विचारों की परिपक्वता
विचारों की परिपक्वता व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की श्रेष्ठता का मापदंड है। भारत की मूलभूत समस्याएँ तथा उनका समाधान इस विषय पर चिंतन-मनन करते समय यह बात विशेष रुप से ध्यान में आयी हैं कि भारतीय नागरिकों में विचारों की अपरिपक्वता ही भारत की सारी समस्या की जड़ है। किसी भी देश की प्रगति या अधोगति उस देश के नागरिकों के विचारों की परिपक्वता पर निर्भर रहती है। आज भारत में इतना वैचारिक संभ्रम है कि सामान्य लोग उन विचारों में उलझ कर रह जाते है तथा योग्य निर्णय लेने में असमर्थ रहते है। विभिन्न विचारों के अनुयायीयों में द्वंद के कारण सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजकीय वातावरण कलुषित हो रहा है। विचारों की अपरिपक्वता के कारण व्यक्तिगत, सामूहिक तथा राष्ट्रीय समस्याएँ दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही हैं। आज हर व्यक्ति का जीवन अस्थिर हो गया है, समाज में अराजकता अपने चरम सीमा पर है, तथा बढ़ती हुई हिंसा से आम आदमी भयभीत है। विचारों की अपरिपक्वता के दूरगामी दुष्परिणाम नजर आ रहे हैं। बौद्धिक भष्ट्राचार भारत की एकता और अखंडता में दरार डाल रही है। विचारों की अपरिपक्वता भारत की विविधता में एकता भंग कर रही है। भावनाएँ विचारों पर हावी होने के कारण उत्पन्न धार्मिक, भाषिक-प्रांतीय तथा जातीय समस्याओं से भारतीय सभ्यता और संस्कृति समाप्त होने के कगार पर खड़ी है। भारत की मूलभूत समस्याआओं के समाधान के लिए भारतीयों में विचारों की परिपक्वता को वृद्धिंगत करने की नितांत आवश्यकता है।
विचारों की अपरिपक्वता के कारण सामान्य लोगों की मानसिकता ही बदल जाती है। आज पारिवारिक कलह के कारण सुखी परिवार नजर ही नहीं आते। समाज में आपसी वैमनस्य बढ़ते जा रहा है। समाज में लगातार नैतिकता का -हास होता जा रहा है। कालबाह्य रूढी परंपरा के कारण अंधविश्वास बढ़ते जा रहा है। जिससे समाज में पढ़े लिखे लोग भी राजनेताओं, अभिनेताओं और ढ़ोंगी साधुओं के पीछे भागते नजर आते हैं। अपने विचार ही सही हैं ऐसी मानसिकता के कारण दूसरों के विचारों के प्रति असहिष्णुता बढ़ रही है। यही विभिन्न वर्गों में संघर्ष का मुख्य कारण है। आज भारत धार्मिक, भाषिक-प्रांतीय और जातीय समस्याओं से जूझ रहा है। आज भारत में द्वेष की राजनिति का बोलबाला है। द्वेष ने भारतीयों के विचारों को कुंठीत कर दिया है। परिणामस्वरुप दहशतवादी, नक्सलवादी और अलगाववादी गतिविधियों ने भारत को लहुलुहान कर दिया है। भाषिक-प्रांतीय हितों के लिए राष्ट्रीय हितों को तिलांजलि दी जा रही है। जातिवादी प्रवृतियों से समाज का विघटन हो रहा है। पाश्चत्य संस्कृति के अंधानुकरण से उत्पन्न आधुनिक समस्याओं ने भारत की समस्याएँ और बढ़ा दी हैं। विचारों की अपरिपक्वता के कारण भारतीय संस्कृति के तत्वों का प्रभाव समाप्त होता जा रहा है।
विचारों की परिपक्वता यह एक प्रक्रिया है। सामाजिक नियमों से, संस्कारो से तथा शिक्षा से विचारों की परिपक्वता बढ़ाने में मदद मिलती है। लेकिन भारतीयों में वंश, वर्ण, वर्ग, प्रांत, भाषा, जाती, पंथ, संप्रदाय, धर्म और संस्कृति का प्रभाव अत्यधिक प्रमाण में है। यही कारण है कि भारतीयों की विचार करने की पद्धति दुषित हो गई है। प्रत्येक भारतीय अपनी जाती, भाषा, प्रांत, धर्म और संस्कृति के हितसंबंधों का विचार करता है। भारतीयों की आत्मकेंद्रित प्रवृत्ति ही भारत की मूलभूत समस्याओं की जड़ है। भारत की समस्याओं के समाधान के लिए कई साधुसंत, समाज सुधारक तथा महापुरुष अनेक वर्षों से प्रयत्न कर रहे हैं फिर भी समस्याएं बढ़ती ही जा रही हैं। जब तक भारतीयों के विचारों में परिपक्वता नहीं आती, तब तक इन समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता। विचारों की परिपक्वता के लिए समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना यह एक कारगर उपाय है। विचारों में परिपक्वता को विकसित करने के लिए समग्रता से विचार करने की पद्धति उत्कृष्ट है। समग्रता से विचार करना अर्थात हर विषय के दोनों बाजू तथा अनेक पहलुओं पर विचार करना। हमेशा एक उदाहरण दिया जाता है कि सिक्के के दो पहलू होते हैं। अनेक प्रक्रियाओं से गुजरकर सिक्का बनता है। उसी तरह विषय के हर पहलू पर विचार करना चाहिए। साधक बाधक विचारों के उपरांत ही किसी भी समस्या का समाधान हो सकता है। भारतीय नागरिकों में विचारों की परिपक्वता से भारत की सारी समस्याओं का समाधान हो सकता है। विचारों की परिपक्वता से ही प्रगल्भ भारत का निर्माण हो सकता है।